Jainism भारतीय दार्शनिक परंपरा की एक प्राचीन और महत्त्वपूर्ण धारा है, जो आत्मा की शुद्धि, अहिंसा, तपस्या और मोक्ष की अवधारणाओं पर आधारित है। इसकी मूल मान्यता है कि हर जीव में अनंत ज्ञान, शक्ति और आनंद की संभावना निहित है, जिसे कर्मों के बंधन से मुक्त होकर प्राप्त किया जा सकता है। Jainism का विकास समय के साथ अनेक विचारधाराओं और व्याख्याओं के साथ हुआ, जिससे इसकी विभिन्न शाखाएँ अस्तित्व में आईं। इन शाखाओं ने न केवल धार्मिक आचार-विचार और आध्यात्मिक साधना के स्वरूप को परिभाषित किया, बल्कि समाज में जैन अनुयायियों की जीवनशैली, पूजा-पद्धति और मठ परंपरा को भी अलग-अलग रूपों में प्रस्तुत किया। जैन दर्शन की प्रमुख शाखाएँ — श्वेतांबर, दिगंबर, स्थानकवासी, तेरापंथी आदि — Jainism की व्याख्या में कुछ भिन्नताओं के बावजूद मूल तत्वों में एकरूपता रखती हैं। यह भौगोलिक, ऐतिहासिक और सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार जैन धर्म की विकास यात्रा और विचारों की बहुलता को दर्शाता है। इस लेख में हम Jainism की विभिन्न शाखाओं, उनके सिद्धांतों, परंपराओं और योगदानों का विस्तृत अध्ययन करेंगे।

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1. दिगंबर और श्वेतांबर: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

Jainism के अनुसार, मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त के शासनकाल (लगभग 300 ई.पू.) में एक भयंकर अकाल पड़ा। इस काल में आचार्य भद्रबाहु दक्षिण भारत चले गए और उनके साथ चंद्रगुप्त मौर्य व कई साधु भी चले गए।

उत्तर भारत में शेष साधुओं ने एक नई परंपरा में ग्रंथों को संकलित करना शुरू किया। समय के साथ:

  • दक्षिण भारत में विकसित परंपरादिगंबर
  • उत्तर भारत में विकसित परंपराश्वेतांबर


2. दिगंबर और श्वेतांबर का संक्षिप्त तुलनात्मक अध्ययन

विषय        दिगंबर        श्वेतांबर
वस्त्र        नग्नता (आकाशवस्त्र)        सफेद वस्त्र (श्वेतांबर)
तीर्थंकरों की मूर्ति       बिना वस्त्र, नेत्र बंद ध्यान मुद्रा         वस्त्र, मुकुट व आभूषणों सहित, नेत्र खुले, जागृत
स्त्रियों का मोक्ष        नहीं संभव, पुनर्जन्म आवश्यक        संभव है
आगम ग्रंथ        मूल आगम लुप्त, अपने ग्रंथ स्वीकार        आगम ग्रंथ संरक्षित, 45 आगम ग्रंथों का संकलन
तपश्चर्या        अत्यंत कठोर        तुलनात्मक रूप से सरल
आचार्य परंपरा        आचार्य कुंदकुंद, समंतभद्र        आचार्य भद्रबाहु, यशोविजयजी
पूजा पद्धति        सरल, प्रतिमा पूजा प्रमुख        विस्तृत, मंदिर पूजा, चंदन, पुष्प आदि का प्रयोग

3. दिगंबर परंपरा का विस्तार

🔹 साधु जीवन:

  • पूर्ण नग्नता
  • हाथ से भोजन (अंजुलि भोजन)
  • कठोर नियम और नियमबद्ध दिनचर्या
  • केवल एक वस्तु – पिच्छी (मोर पंखों से बनी) और कमंडलु

🔹 धार्मिक साहित्य:

  • प्रमुख ग्रंथ: समयसार, प्रवचनसार, गोंधलीय सूत्र, पंचास्तिकाय
  • रचनाकार: आचार्य कुंदकुंद, समंतभद्र, उमास्वाति, जिनसेन, अशोकनंदि

🔹 आचार्य परंपरा:

  • दिगंबर परंपरा में गुरु का स्थान अत्यंत ऊँचा माना जाता है
  • पंचम काल में भी साधना परंपरा बनी रही


4. श्वेतांबर परंपरा का विस्तार

🔹 साधु जीवन:

  • सफेद वस्त्र पहनते हैं
  • झाड़न (राजोहरण) और मुखपट्टी प्रयोग करते हैं
  • आहार पात्र रखते हैं
  • स्त्रियाँ भी दीक्षा ले सकती हैं – साध्वी परंपरा प्रचलित

🔹 साहित्य और आगम परंपरा:

  • श्वेतांबर परंपरा ने 12 अंग, 12 उपांग, मूलसूत्र, सूत्रकृतांग, दशवैकालिक सूत्र आदि को संरक्षित किया
  • 45 आगमों का संकलन
  • आचार्य हेमचंद्र, यशोविजयजी जैसे महान विचारक


5. उपशाखाएँ और मतभेद का विकास

🟠 श्वेतांबर की उपशाखाएँ:

1. मूर्तिपूजक श्वेतांबर:

  • प्रतिमा पूजा करते हैं
  • जैन मंदिरों में पूजा विधियाँ

2. स्थानकवासी:

  • मूर्ति पूजा का विरोध
  • ध्यान, स्वाध्याय और प्रवचन में विश्वास
  • आचार्य लोनकशाह के द्वारा प्रवर्तित

3. तेरापंथ:

  • स्थानकवासी शाखा से उत्पन्न
  • एक आचार्य के अधीन संपूर्ण व्यवस्था
  • आचार्य तुलसी → आचार्य महाप्रज्ञ → वर्तमान आचार्य महाश्रमण

🔵 दिगंबर की उपशाखाएँ:

1. बीसपंथी:

  • प्रतिमा पूजा के साथ परंपरागत विधियों का पालन

2. तारणपंथी:

  • 15वीं शताब्दी में आचार्य तारणस्वामी द्वारा स्थापित
  • मूर्तिपूजा रहित
  • ध्यान, तत्वचिंतन पर बल


6. साधना और दीक्षा परंपरा

दोनों परंपराओं में दीक्षा को अत्यंत पवित्र और कठोर तप का आरंभ माना गया है।
कुछ मुख्य बिंदु:

  • जीवनभर ब्रह्मचर्य पालन
  • अहिंसा और अपरिग्रह का पालन
  • सच्चे वचनों का प्रयोग
  • नियमित आहार और उपवास
  • गहन ध्यान और स्वाध्याय


7. मूर्ति और मंदिर परंपरा का अंतर

पक्ष            दिगंबर                श्वेतांबर
मूर्ति            नग्न, ध्यानमग्न (नेत्र बंद), शांत मुद्रा                 वस्त्रधारी, जागृत (नेत्र खुले) अलंकरण सहित
मंदिर            सादगी से बने                भव्यता और कलात्मकता
पूजा            सरल, कम विधि-विधान और संसाधन                 विस्तृत, शंख-घंटा आदि

8.  भारत के प्रमुख जैन तीर्थ

🔹 सम्मेद शिखरजी (झारखंड)

  • Jainism का सबसे पवित्र तीर्थ
  • 20 तीर्थंकरों को यहीं निर्वाण प्राप्त हुआ
  • पारसनाथ पहाड़ी, 4,479 फीट ऊँची
  • दिगंबर व श्वेतांबर – दोनों के लिए समान रूप से पूज्य

🔹 पावापुरी (बिहार)

  • भगवान महावीर का निर्वाण स्थल
  • जल मंदिर और भूमि मंदिर प्रसिद्ध
  • बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित

🔹 श्री शत्रुंजय तीर्थ (पालिताना, गुजरात)

  • 863 से अधिक मंदिर
  • प्रमुख श्वेतांबर तीर्थ
  • आदिनाथ भगवान का प्रमुख स्थल

🔹 श्रवणबेलगोला (कर्नाटक)

  • बाहुबली (गोमटेश्वर) की 57 फीट ऊँची प्रतिमा
  • दिगंबर परंपरा का महान तीर्थ
  • हर 12 वर्षों में महामस्तकाभिषेक उत्सव होता है

🔹 रणकपुर (राजस्थान)

  • चौंमुखा मंदिर – 1444 स्तंभों वाला चमत्कारी मंदिर
  • भगवान आदिनाथ को समर्पित
  • सफेद संगमरमर से निर्मित अद्भुत वास्तुशिल्प

🔹 श्री महावीरजी (राजस्थान)

  • करौली ज़िले में स्थित
  • दिगंबर व श्वेतांबर – दोनों मान्यताओं द्वारा पूजित
  • वार्षिक मेले का आयोजन होता है

🔹 मुक्ता गिरि (मध्यप्रदेश)

  • 52 टोंक (छोटे पर्वत) – हर एक पर मंदिर
  • दिगंबर साधुओं की तप स्थली


9. जैन संतों की वैश्विक परंपरा

जैसे-जैसे जैन अनुयायी विदेशों में बसे, वैसे-वैसे जैन धर्म का विस्तार हुआ। इसके दो रूप हैं:

🔸 प्रवासी जैन मंदिर:

अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, केन्या आदि देशों में जैन मंदिर बने प्रमुख स्थल:

  • Jain Center of Southern California
  • Shri Vimalnath Jain Temple, London
  • Shree Mahavir Swami Jain Temple, Nairobi

🔸 शिक्षण एवं शोध संस्थान:

  • Claremont Lincoln University (USA) – जैन अध्ययन के लिए
  • Harvard, Oxford में जैन दर्शन पर रिसर्च
  • जैन इंटरनेट समुदाय (JAINA.org

10. निष्कर्ष

दिगंबर और श्वेतांबर – दोनों Jainism की दो मजबूत शाखाएँ हैं, जिन्होंने अलग-अलग कालखंडों में धर्म का संरक्षण और प्रचार किया। उनके मतों में भिन्नता है, परंतु मूल तत्व एक ही है – आत्मा की शुद्धि और मोक्ष।
जहाँ एक ओर दिगंबर परंपरा कठोर संयम और नग्नता को महत्व देती है, वहीं श्वेतांबर परंपरा लचीलेपन के साथ अधिक सामाजिक समरसता लाती है।


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