जैन दर्शन एक प्राचीन भारतीय दर्शन और आध्यात्मिक परंपरा है, जो अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पंचमहाव्रतों पर आधारित है। जैन धर्म का मूल सिद्धांत "अनेकांतवाद" और "स्यादवाद" है, जो बहु-आयामी दृष्टिकोण को दर्शाता है। जैन दर्शन के अनुसार, प्रत्येक जीव में एक अमर आत्मा होती है, जो कर्म के बंधन से मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त कर सकती है। जैन दर्शन शृंखला का पिछले लेख में हमने जैन विचारधारा को जाना और इस लेख में हम जैन दर्शन व सिद्धांतो को समझने का प्रयास करेंगे |
जैन तत्त्वज्ञान
(Seven Fundamentals – सात तत्त्व)
जैन दर्शन का केंद्रीय स्तंभ है – "सप्त तत्त्व" या "सप्त पदार्थ", जो आत्मा की मुक्ति के मार्ग को स्पष्ट करते हैं। ये तत्त्व हैं:
1. जीव (आत्मा)
- चेतन तत्व है
- जानने, देखने, और कर्म करने की शक्ति से युक्त
- अनादि, अनंत, स्वतंत्र
- शुभ और अशुभ कर्मों के कारण बंधन में आता है
2. अजीव (निर्चेतन तत्व)
-
पांच प्रकार:
- धर्मास्तिकाय – गति में सहायक माध्यम
- अधर्मास्तिकाय – गति को रोकने वाला माध्यम
- आकाशास्तिकाय – स्थान देने वाला तत्व
- पुद्गलास्तिकाय – भौतिक द्रव्य (जैसे शरीर, पदार्थ, शब्द)
- काल (समय) – परिवर्तन का कारण
3. आस्रव (कर्मों का प्रवाह)
- अशुभ भावों (राग, द्वेष, मोह आदि) के कारण कर्म आत्मा में प्रवेश करते हैं
- इसे रोकने के लिए संयम और सत्संग आवश्यक
4. बंधन (कर्मों का आत्मा से जुड़ना)
- जैसे गीले शरीर पर धूल चिपक जाती है, वैसे ही राग-द्वेष से आत्मा पर कर्म चिपक जाते हैं
- यह कर्म बंधन आत्मा को संसार में बाँधता है
5. संवर (कर्मों का आवागमन रोकना)
- संयम, तप, ध्यान, और विवेक द्वारा नया कर्म प्रवेश रोकना
- साधु-साध्वी इस मार्ग पर चलते हैं
6. निर्जरा (कर्मों का क्षय)
- तप, ध्यान और आत्म शुद्धि से पूर्व कर्मों का नाश
- जैसे लकड़ी जलाकर भस्म हो जाती है, वैसे ही कर्म भी तप से समाप्त होते हैं
7. मोक्ष (कर्म-मुक्त अवस्था)
- पूर्ण निर्जरा के बाद आत्मा शुद्ध, स्वतंत्र और सर्वज्ञ हो जाती है
- न जन्म, न मरण – केवल ज्ञान, शांति और आनंद की स्थिति
आत्मा और अजीव का सिद्धांत
🟠 आत्मा (जीव)
- चेतन है
- अनादी और अनंत है
- आकार में शरीर के बराबर होता है
- हर जीव में आत्मा होती है (एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक)
- आत्मा का धर्म है – ज्ञान और दर्शन
जैन दर्शन आत्मा की स्वतंत्र सत्ता को स्वीकार करता है। यह आत्मा न किसी ईश्वर की इच्छा से बनती है और न समाप्त होती है। आत्मा स्वयं अपने कर्मों की ज़िम्मेदार है।
🔵 अजीव
- चेतना रहित पदार्थ
- इसमें पांच द्रव्य (स्तविकाय) आते हैं
- यह आत्मा की मुक्ति या बंधन में सहायक होते हैं, लेकिन उसका नियंत्रण नहीं करते
3. कर्म सिद्धांत (Karma Theory in Jainism)
जैन धर्म में कर्म कोई अदृश्य शक्ति नहीं बल्कि सूक्ष्म भौतिक कण होते हैं। ये आत्मा से चिपकते हैं और उसके जन्म, गुण, स्थान, और अवस्था को नियंत्रित करते हैं |
कर्मों के प्रकार:
| कर्म का नाम | कार्य |
|---|
- ज्ञानावरणीय : ज्ञान को ढकने वाला
- दर्शनावरणीय : देखने की शक्ति को ढकने वाला
- मोहनीय सम्यक : दृष्टि और चरित्र को ढकने वाला
- वेदनीय : सुख और दुःख का अनुभव कराता है
- आयुष्य : आयु निर्धारित करता है
- नाम : शरीर का प्रकार, वर्ण, आकृति आदि तय करता है
- गोत्र : कुल और सामाजिक स्थिति
- अंताराय : अच्छे कार्यों में बाधा डालता है।
👉 इनमें से ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अंताराय को "घातिया कर्म" कहते हैं – जो आत्मा के गुणों को हानि पहुँचाते हैं।
4. मोक्ष मार्ग और तप
⚖️ मोक्ष (Liberation)
मोक्ष का अर्थ है – कर्म बंधन से मुक्त होकर शुद्ध आत्मा की स्थिति प्राप्त करना।
🧘♂️ मोक्ष के तीन साधन (त्रिरत्न):
- सम्यक दर्शन
- सम्यक ज्ञान
- सम्यक चरित्र
इन तीनों को जीवन में अपनाकर ही मोक्ष संभव है। केवल पूजा-पाठ से नहीं, बल्कि आत्मा के व्यवहारिक शुद्धिकरण से मोक्ष मिलता है।
🔥 तप के प्रकार:
1. बाह्य तप (External Austerities):
- अन्न त्याग (उपवास)
- स्वाद त्याग
- एकासन
- काय कष्ट
- मौन
- समय सीमा में आहार
2. आभ्यंतर तप (Internal Austerities):
- प्रायश्चित
- विनय
- वैयावृत्त्य (सेवा)
- स्वाध्याय
- ध्यान
- कायोत्सर्ग (शरीर त्याग की भावना)
5. जैन दर्शन की वैज्ञानिकता
- जैनों का कर्म सिद्धांत आज के साइकोलॉजिकल और न्यूरो-साइंस से मेल खाता है – जैसे हर क्रिया की प्रतिक्रिया
- अनेकांतवाद और स्याद्वाद आज के रिलेटिव थ्योरी और मल्टी-डायमेंशनल सोच से जुड़ा है
- जैन धर्म का पर्यावरण के प्रति दृष्टिकोण आधुनिक "इकोलॉजिकल फॉर्म्स" से कहीं आगे है
- जैन संतों का सोलर कैलेंडर, ज्योतिष ज्ञान, और शून्य पर आधारित तर्क – गणित और खगोल विज्ञान में योगदान देते हैं
6. जैन दर्शन और महिला मोक्ष का विषय
✨ दिगंबर दृष्टिकोण:
- महिलाएँ मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकतीं, उन्हें पुरुष के रूप में पुनर्जन्म लेना आवश्यक है
- नग्नता की कठिन साधना स्त्रियों के लिए संभव नहीं मानी जाती
✨ श्वेतांबर दृष्टिकोण:
- महिलाएँ भी संयम, तप और त्रिरत्न के आधार पर मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं
- कई शास्त्रों में "मालिनी", "चंदना", आदि साध्वियों के मोक्ष की कथा मिलती है
👉 यह विवाद केवल बाह्य नियमों का है, आत्मा की योग्यता में दोनों परंपराएँ सहमत हैं।
निष्कर्ष
जैन तत्त्वज्ञान एक अत्यंत सूक्ष्म और वैज्ञानिक दर्शन है, जो आत्मा, पदार्थ, समय और कर्मों को अत्यंत तार्किक और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करता है।
- इसका कर्म सिद्धांत, आत्मा की स्वतंत्रता का सिद्धांत, मोक्ष का मार्ग – सभी आत्मा की पूर्ण मुक्ति को लक्ष्य बनाते हैं।
- इसमें बिना किसी ईश्वर की पूजा के, केवल आत्मा की शक्ति पर विश्वास किया जाता है।
- यही कारण है कि जैन दर्शन न केवल धार्मिक है, बल्कि दार्शनिक, नैतिक और व्यवहारिक जीवन का भी आधार है।
🔍 Frequently Asked Questions (FAQs)
❓ तत्त्वज्ञान क्या है और जैन दर्शन में इसका क्या महत्व है?
उत्तर: जैन तत्त्वज्ञान सात तत्त्वों (जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष) पर आधारित है, जो आत्मा की मुक्ति की दिशा दिखाते हैं।
❓ जैन दर्शन में आत्मा को कैसे परिभाषित किया गया है?
उत्तर: आत्मा को चेतन, स्वतंत्र और अनादि तत्व माना गया है। प्रत्येक आत्मा में सिद्ध बनने की क्षमता होती है, बशर्ते वह कर्मों से मुक्त हो।
❓ जैन दर्शन के अनुसार कर्म क्या है?
उत्तर: जैन मत में कर्म भौतिक सूक्ष्म कण होते हैं जो आत्मा से चिपक जाते हैं और जन्म, मृत्यु, सुख-दुख आदि के कारण बनते हैं।
❓ जीव और अजीव में क्या अंतर है?
उत्तर: जीव चेतन तत्व हैं जिनमें जान, ज्ञान और अनुभूति होती है। अजीव निर्जीव तत्व हैं जैसे समय, धर्मास्तिकाय, आकाश आदि।
❓ मोक्ष की प्राप्ति के लिए जैन दर्शन क्या उपाय बताता है?
उत्तर: त्रिरत्न – सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र को अपनाकर व्यक्ति संवर और निर्जरा के माध्यम से मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
❓ तत्त्वार्थसूत्र में तत्त्वज्ञान का वर्णन कैसे किया गया है?
उत्तर: आचार्य उमास्वाति द्वारा रचित तत्त्वार्थसूत्र में सभी सात तत्त्वों का सटीक व वैज्ञानिक वर्णन किया गया है, जो जैन दर्शन की आधारशिला है।

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