Jainism एक प्राचीन और आत्मसाक्षात्कार पर आधारित आध्यात्मिक परंपरा है, जिसकी नींव तत्त्वज्ञान, तपस्या और अहिंसा पर रखी गई है। इस धर्म के मार्गदर्शक और सर्वोच्च आदर्श 24 तीर्थंकर माने जाते हैं, जिन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त कर संसार के प्राणियों को मोक्ष का मार्ग दिखाया। "तीर्थंकर" का अर्थ होता है — वह आत्मज्ञानी महापुरुष जो संसार सागर को पार करने हेतु धर्म का तीर्थ स्थापित करें। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी तक, इन महापुरुषों ने तप, त्याग और सत्य के बल पर कर्मों की बंधन से मुक्ति पाई और अन्य जीवों को भी उसी राह पर चलने की प्रेरणा दी। इनका जीवनचरित्र, उपदेश और साधना का मार्ग Jainism का मूल आधार है, जो आज भी मानवता को नैतिकता, संयम और शांति का संदेश देता है।

Jainism 4

भूमिका – तीर्थंकर का अर्थ 

Jainism अनुसार, तीर्थंकर वे महान आत्मा होते हैं जिन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त कर संसार सागर से पार उतरने का मार्ग बनाया और असंख्य प्राणियों को मोक्ष का मार्ग दिखाया।
“तीर्थंकर” शब्द दो भागों से बना है – “तीर्थ” अर्थात मोक्षमार्ग और “कर” अर्थात निर्माता।

हर काल चक्र में २४ तीर्थंकर होते हैं। वर्तमान अवसर्पिणी काल में भी २४ तीर्थंकर हुए, जिनमें अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर थे।


24 तीर्थंकरों का क्रमवार विवरण

🟠 1. ऋषभदेव (आदि तीर्थंकर)

  • जन्म स्थान: अयोध्या
  • पिता: नाभिराज
  • माता: मरुदेवी
  • चिह्न: बैल
  • उपदेश स्थल: प्रयाग
  • निर्वाण स्थान: कैलाश पर्वत

भगवान ऋषभदेव को Jainism का प्रथम तीर्थंकर कहा गया है। वे स्वयंभू (अनादि) हैं और समाज को कृषि, व्यापार, संगीत, लिपि, शिक्षा, प्रशासन आदि की विधियाँ सिखाने वाले थे। उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती और बाहुबली भी प्रसिद्ध पात्र हैं।


🟠 2. अजातशत्रु (अजितनाथ)

  • जन्म स्थान: अयोध्या
  • पिता: जितशत्रु राजा
  • माता: विजय देवी
  • चिह्न: हाथी
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

भगवान अजितनाथ ने यश, वैभव, और ऐश्वर्य के मार्ग को त्यागकर तप और संयम का मार्ग अपनाया। उन्होंने कई लोगों को आत्मचिंतन की ओर प्रेरित किया।


🟠 3. सम्भवनाथ

  • जन्म स्थान: शावस्ती
  • पिता: विश्वसेन
  • माता: समना देवी
  • चिह्न: अश्व (घोड़ा)
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

सम्भवनाथ अत्यंत तेजस्वी और शांतिप्रिय थे। उन्होंने अपने जीवन से बताया कि संयमित विचार और दया ही मानवता की नींव हैं।


🟠 4. अभिनंदननाथ

  • जन्म स्थान: अयोध्या
  • पिता: महासेन
  • माता: सिद्धार्था
  • चिह्न: वानर
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

भगवान अभिनंदन शांत स्वभाव वाले, मधुर भाषी और गहन तपस्वी थे। वे ज्ञान, ध्यान और धर्म के प्रतीक माने जाते हैं।


🟠 5. सुमतिनाथ

  • जन्म स्थान: अयोध्या
  • पिता: मेघराज
  • माता: मंगला देवी
  • चिह्न: ककुभ (चकोर पक्षी)
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

सुमतिनाथजी का जीवन सहजता, सत्य और सरलता की मिसाल था। उन्होंने सामाजिक समरसता और आत्मनियंत्रण पर बल दिया।


🟠 6. पद्मप्रभु

  • जन्म स्थान: कौशांबी
  • पिता: श्रीधर
  • माता: सुशीमा देवी
  • चिह्न: कमल
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

भगवान पद्मप्रभु अत्यंत सौंदर्यवान और करुणामय व्यक्तित्व के स्वामी थे। उन्होंने अहिंसा और संयम के मार्ग को जीवन का आदर्श बताया।


🟠 7. सुपार्श्वनाथ

  • जन्म स्थान: वाराणसी
  • पिता: प्रजापति
  • माता: रमादेवी
  • चिह्न: स्वस्तिक
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

उनका जीवन संयम, न्याय और समानता का प्रतीक है। स्वस्तिक चिह्न उनके चारों गुणों (ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप) का प्रतीक माना जाता है।


🟠 8. चंद्रप्रभु

  • जन्म स्थान: चंद्रपुरी (वाराणसी)
  • पिता: महाश्रवण
  • माता: लक्ष्मणा देवी
  • चिह्न: चंद्रमा
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

चंद्रप्रभु का तेज चंद्रमा के समान शीतल था। वे शांतिप्रिय, विवेकी और अत्यंत संयमी थे। उनका जीवन ब्रह्मचर्य और मानसिक शांति का प्रतीक है।

🟠 9. पुष्पदंत (सुविधिनाथ)

  • जन्म स्थान: काकंधी नगरी
  • पिता: सुकर्मा राजा
  • माता: सुप्रभा देवी
  • चिह्न: मगरमच्छ
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

पुष्पदंतजी ने संयम, विवेक और मोक्षमार्ग की उच्चतम साधना की। उनका चिह्न मगरमच्छ जल के भीतर रहने वाले गहन संयम का प्रतीक है।


🟠 10. शीतलनाथ

  • जन्म स्थान: भद्रिकापुरी (उत्तर प्रदेश)
  • पिता: द्रद्रथ
  • माता: नंदा देवी
  • चिह्न: कल्पवृक्ष
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

शीतलनाथ का जीवन नाम के अनुरूप शीतलता, शांति और करुणा से परिपूर्ण था। कल्पवृक्ष उनके असीम दान और ज्ञान का प्रतीक है।


🟠 11. श्रेयांसनाथ

  • जन्म स्थान: सिंहपुरी (वाराणसी)
  • पिता: विष्णुराज
  • माता: विभावती देवी
  • चिह्न: गैंडा
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

श्रेयांसनाथ का जीवन सत्कर्मों और परोपकार की प्रेरणा रहा। उन्होंने संयम, क्षमा और तप के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया।


🟠 12. वासुपूज्य

  • जन्म स्थान: चंपापुरी (बिहार)
  • पिता: वासुपूज्य
  • माता: जयादेवी
  • चिह्न: भैंस
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: चंपापुरी

भगवान वासुपूज्य को त्रिकालजयी भी कहा जाता है – उन्होंने जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान एक ही दिन में प्राप्त किया। भैंस का चिह्न उनके धैर्य और स्थिरता का प्रतीक है।


🟠 13. विमलनाथ

  • जन्म स्थान: कौशांबी
  • पिता: कृष्णराज
  • माता: शोभना देवी
  • चिह्न: शूकर (वराह)
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

विमलनाथ का जीवन विकारों से विमुक्ति और आत्मनिर्माण का संदेश देता है। उनका जीवन सहजता और स्वच्छता का प्रतीक है।


🟠 14. अनंतनाथ

  • जन्म स्थान: अयोध्या
  • पिता: सिंहसेन
  • माता: सुदर्शन
  • चिह्न: बाज (गरुड़)
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

अनंतनाथ जी ने अहिंसा और त्याग का ऐसा संदेश दिया जो आज भी प्रासंगिक है। उनका चिह्न गरुड़ गति, निर्भयता और आत्मबल का प्रतीक है।


🟠 15. धर्मनाथ

  • जन्म स्थान: रत्नपुरी (उत्तर प्रदेश)
  • पिता: भानुसेन
  • माता: सुशीला देवी
  • चिह्न: वज्र
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

धर्मनाथ जी का जीवन धर्म की दृढ़ता और नीति का आदर्श था। वज्र उनके अडिग सिद्धांतों का प्रतीक है।


🟠 16. शांतिनाथ

  • जन्म स्थान: हस्तिनापुर
  • पिता: विश्वसेन
  • माता: अचिरा देवी
  • चिह्न: मृग (हरिण)
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

शांतिनाथ जी दीर्घ जीवन के धनी थे (१००० वर्षों तक जीवित रहे)। उन्होंने अशांति से भरे समाज में संयम, अहिंसा और मैत्री की गंगा बहाई।


🟠 17. कुंथुनाथ

  • जन्म स्थान: हस्तिनापुर
  • पिता: सूर्यसेन
  • माता: श्रीदेवी
  • चिह्न: बकरी
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

कुंथुनाथ जी के जीवन का सार रहा संयम, करुणा और आत्मशुद्धि। बकरी उनके सौम्य स्वभाव और सहिष्णुता का प्रतीक है।


🟠 18. अरनाथ

  • जन्म स्थान: हस्तिनापुर
  • पिता: सुदर्शन राजा
  • माता: देवी मिथिला
  • चिह्न: मछली
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

अरनाथ जी ने समाज में धार्मिक अनुशासन और आंतरिक साधना का संदेश फैलाया। मछली आत्मा की अनंत गति और परिश्रम का प्रतीक है।


🟠 19. मल्लिनाथ

  • जन्म स्थान: मिथिला
  • पिता: कुंभराज
  • माता: प्रभावती
  • चिह्न: कलश
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

मल्लिनाथ जी को कुछ श्वेतांबर परंपराओं में स्त्री तीर्थंकर भी माना जाता है। उनका जीवन संयम और मैत्री का आदर्श है। कलश का अर्थ है – आंतरिक पवित्रता और पूर्णता।


🟠 20. मुनिसुव्रतनाथ

  • जन्म स्थान: राजगृह (बिहार)
  • पिता: सुमित्र
  • माता: पद्मावती
  • चिह्न: कछुआ
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

मुनिसुव्रतनाथ जी का जीवन तप, धैर्य और दृढ़ निष्ठा का प्रतीक रहा। कछुआ आत्मा की स्थिरता और भीतर की ओर यात्रा का प्रतीक है।


🟠 21. नमिनाथ

  • जन्म स्थान: मिथिला
  • पिता: विजयराज
  • माता: विप्रराजा
  • चिह्न: नीला कमल
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

नमिनाथ जी का जन्म और जीवन संयम व शांति का प्रतीक रहा। नीला कमल आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है।


🟠 22. नेमिनाथ (अरिष्टनेमि)

  • जन्म स्थान: सौरिपुर (द्वारका)
  • पिता: समुद्धराज
  • माता: शिवादेवी
  • चिह्न: शंख
  • उपदेश स्थल: गिरनार पर्वत
  • निर्वाण स्थान: गिरनार पर्वत

भगवान नेमिनाथ श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे। उन्होंने विवाह के समय यज्ञ में बलि के लिए बंदी पशुओं की करुण पुकार सुनकर सबकुछ त्याग दिया। उनका जीवन करुणा, वैराग्य और अहिंसा का जीवंत उदाहरण है। शंख उनका प्रतीक है, जो आध्यात्मिक जागरण को दर्शाता है।


🟠 23. पार्श्वनाथ

  • जन्म स्थान: वाराणसी
  • पिता: अश्वसेन
  • माता: वामादेवी
  • चिह्न: सर्प
  • उपदेश स्थल: सम्मेद शिखर
  • निर्वाण स्थान: सम्मेद शिखरजी

पार्श्वनाथजी ऐतिहासिक रूप से सिद्ध व्यक्ति माने जाते हैं (लगभग 877 ई. पू.)। उन्होंने चार महाव्रतों (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह) का उपदेश दिया। पाँचवां व्रत ब्रह्मचर्य महावीर ने जोड़ा। उनका चिह्न सर्प है, जो आंतरिक जागृति और रक्षा का प्रतीक है।


🟠 24. महावीर स्वामी

  • जन्म स्थान: कुंडलपुर (वैशाली)
  • पिता: सिद्धार्थ
  • माता: त्रिशला
  • चिह्न: सिंह
  • उपदेश स्थल: पावापुरी सहित अनेक स्थल
  • निर्वाण स्थान: पावापुरी (बिहार)

भगवान महावीर अंतिम तीर्थंकर हैं। उन्होंने पंच महाव्रत, अणुव्रत, अनेकांतवाद, अपरिग्रह और क्षमा का मार्ग दिया। उनके सिद्धांतों पर आधारित वर्तमान Jainism की दो प्रमुख शाखाएँ — दिगंबर और श्वेतांबर — विकसित हुईं। सिंह उनके चिह्न का अर्थ है – निडरता, शक्ति और आत्मबल।


निष्कर्ष

“24 तीर्थंकर” केवल इतिहास नहीं, बल्कि Jainism के उस मूलभूत संदेश के वाहक हैं जो आत्मा की शुद्धि, अहिंसा, बहुलता की समझ (अनेकांतवाद) और आत्मअनुशासन पर आधारित है। उनके द्वारा स्थापित मूल्यों को आज की तेज़-तर्रार दुनिया में आत्मिक शांति, नैतिकता और सामंजस्य के लिए अपनाया जा सकता है।

Jainism के 24 तीर्थंकरों के जीवन वृत्त को एक लेख में समेट पाना कठिन कार्य है, इस लिए यहां 24 तीर्थंकरों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है ताकि जो गैर-जैनबंधु भी तीर्थंकरों की महिमा समझ सके और प्रतीक चिन्हों से उन्हें पहचान सके | भविष्य में हम प्रयास करेंगे कि प्रत्येक तीर्थंकर के जीवन चरित्र पर अलग-अलग लेख प्रस्तुत कर सकें|  आपको यदि ये लेख अच्छा लगा हो तो इसे अपने मित्रों  और परिचितों के साथ साझा करें |  

🔍 Frequently Asked Questions (FAQs)

❓ क्या तीर्थंकरों की मूर्तियाँ सभी शाखाओं में एक जैसी होती हैं?

उत्तर: दिगंबर मूर्तियाँ निर्वस्त्र और शांत मुद्रा में होती हैं, जबकि श्वेतांबर मूर्तियाँ वस्त्र धारण किए होती हैं।

❓ तीर्थंकर बनने के लिए क्या आवश्यक है?

उत्तर: तीर्थंकर बनने के लिए आत्मा को अनंत पुण्य, सम्यक दर्शन, चारित्र, संयम और १०० जन्मों की विशेष साधना की आवश्यकता होती है।

❓ क्या सभी तीर्थंकर दिगंबर थे?

उत्तर: तीर्थंकर निर्वस्त्र तपस्वी थे, किंतु श्वेतांबर परंपरा में कुछ तीर्थंकर वस्त्रधारी भी माने जाते हैं। यह संप्रदायिक दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।

❓ सम्मेद शिखर क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर: यह पर्वत स्थल २० तीर्थंकरों के निर्वाण का स्थान है। यह Jainism का सबसे पवित्र तीर्थ माना जाता है।

❓ तीर्थंकरों के प्रतीक चिह्न क्यों दिए गए हैं?

उत्तर: हर तीर्थंकर का प्रतीक चिह्न उनके गुणों, संदेश या जीवनचर्या का प्रतीक होता है, जिससे उन्हें भक्तगण आसानी से पहचान सकें।

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