Bhagwan Shiv : जगत की उत्पत्ति, स्थिति और विलय के कारक

Bhagwan Shiv (भगवान शिव), जिन्हें महादेवनीलकंठशंकर और रुद्र के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वे त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में संहार के देवता माने जाते हैं, किंतु वे केवल विनाशक ही नहीं, बल्कि सृजन और पालन के भी अधिष्ठाता हैं। शिव पुराण में कहा गया है –

"यतो जगत् उत्पत्ति-स्थिति-लयकारणं शिवम्।"
(जिससे जगत की उत्पत्ति, स्थिति और लय होती है, वही शिव हैं।)

Bhagwan Shiv
Bhagwan Shiv

Bhagwan Shiv (भगवान शिव) का स्वरूप अद्वितीय है – वे अर्धनारीश्वर रूप में सृष्टि के द्वैत को दर्शाते हैं, तो नटराज के रूप में ब्रह्मांडीय नृत्य करते हैं। उनका तांडव नृत्य सृष्टि के चक्र को प्रदर्शित करता है।

1. Bhagwan Shiv (भगवान शिव) के विविध नाम एवं अर्थ

Bhagwan Shiv (भगवान शिव) के हज़ारों नाम हैं, जिनमें से प्रत्येक का गहरा अर्थ है। शिव शब्द का अर्थ है "कल्याणकारी"। वे भोलेनाथ हैं, जो भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। महाकाल के रूप में वे समय के स्वामी हैं, तो पशुपतिनाथ के रूप में जीवों के रक्षक।

संस्कृत श्लोक में कहा गया है –

"कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि।।"
(मैं उस कर्पूर के समान गौर, करुणा के अवतार, संसार के सार, सर्पों की माला धारण करने वाले, हृदय-कमल में सदा विराजमान भगवान शिव और पार्वती को नमन करता हूँ।)

2. शिवलिंग: निराकार ब्रह्म का प्रतीक

Bhagwan Shiv (भगवान शिव) की पूजा मुख्यतः शिवलिंग के रूप में की जाती है, जो निराकार ईश्वर का प्रतीक है। लिंग पुराण में कहा गया है कि शिवलिंग ब्रह्मांडीय स्तंभ (ज्योतिर्लिंग) का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका न आदि है और न अंत। भारत में 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जो शिव के दिव्य प्रकाश के प्रतीक हैं।

3. शिव की पारिवारिक लीला

Bhagwan Shiv (भगवान शिव) का परिवार (शिव-परिवार) दिव्य और आदर्श है। माता पार्वती उनकी अर्धांगिनी हैं, जो शक्ति का प्रतीक हैं। उनके पुत्र कार्तिकेय (षण्मुख) युद्ध के देवता हैं, तो गणेश विघ्नहर्ता। नंदी (वृषभ) उनका वाहन और गणों का अधिपति है।

4. शिव तंत्र एवं योग के देवता

Bhagwan Shiv (भगवान शिव) को आदियोगी कहा जाता है। वे योग, ध्यान और तपस्या के प्रथम गुरु हैं। पतंजलि योगसूत्र में उन्हें योगेश्वर कहा गया है। वे समाधि की परम अवस्था में रहते हैं।

"योगिनां प्रभुरेकः शिवः।"
(शिव ही योगियों के एकमात्र स्वामी हैं।)

5. शिव की भक्ति: भोले के भक्त

Bhagwan Shiv (भगवान शिव) भक्ति का सरलतम मार्ग है – "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जप। भक्तों के लिए वे बाबा भोलेनाथ हैं, जो बेलपत्र, भांग और धतूरे जैसे सरल उपहारों से प्रसन्न हो जाते हैं। 

6. शिव का दार्शनिक स्वरूप: निराकार से साकार तक

Bhagwan Shiv (भगवान शिव) ही सनातन धर्म के मूल आधार हैं। वे निर्गुण-निराकार ब्रह्म भी हैं और सगुण-साकार ईश्वर भी। वेदों में उन्हें रुद्र कहा गया है, जो प्रलयकाल में समस्त सृष्टि को अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं, किंतु उसी अग्नि में नवीन सृजन का बीज भी छिपा होता है।

ॐ नमो भगवते रुद्राय। (यजुर्वेद 16.1)
(रुद्र को प्रणाम, जो कल्याणकारी और उग्र स्वरूप धारण करते हैं।)

शिवपुराण में कहा गया है:

"अनादिनिधनं शान्तं निर्विकल्पमनामयम्।
एकं रूपं भगवतः शिवस्य परमात्मनः।।"
(शिव अनादि, अनन्त, शान्त, निर्विकार और रोगरहित हैं। वे एक ही परमात्मा के स्वरूप हैं।)


7. शिवलिंग: ब्रह्माण्डीय स्तम्भ का प्रतीक

शिवलिंग केवल पत्थर की मूर्ति नहीं, बल्कि सृष्टि का केन्द्रबिन्दु है। स्कन्दपुराण में वर्णित है कि जब ब्रह्मा और विष्णु "अनन्त शिव" का अंत ढूँढ रहे थे, तब एक अग्निस्तम्भ (ज्योतिर्लिंग) प्रकट हुआ, जिसका न आदि था, न अंत। यही अक्षय स्तम्भ शिवलिंग के रूप में पूजित हुआ।


8. शिव के पंचमुखी स्वरूप और पञ्चकृत्य

शिव पंचानन (पाँच मुख) रूप में ब्रह्माण्ड के पाँच मूल कार्य सम्पन्न करते हैं:

मुखकार्यवेद सम्बन्धमंत्र (मैत्रायणी उपनिषद)
ईशानसृष्टिऋग्वेदॐ ईशानः सर्वविद्यानाम्
तत्पुरुषपालनयजुर्वेदॐ तत्पुरुषाय विद्महे
अघोरसंहारअथर्ववेदॐ अघोरेभ्यो अथ घोरेभ्यः
वामदेवअनुग्रहसामवेदॐ वामदेवाय नमः
सद्योजातमोक्षसमस्तॐ सद्योजातं प्रपद्यामि

9. ताण्डव नृत्य: लय और प्रलय का संगीत

Bhagwan Shiv (भगवान शिव) का रुद्र ताण्डव सृष्टि के अंत (प्रलय) का प्रतीक है, जबकि आनन्द ताण्डव नवनिर्माण का। नटराज की मूर्ति में:

  • आग: विनाशक शक्ति
  • डमरू: नादब्रह्म (सृष्टि का प्रथम ध्वनि)
  • उठा हुआ पैर: मोक्ष का मार्ग
  • अपने ऊपर पैर: भक्त की शरणागति

"नृत्यं करोति भगवान् लोकानां हितकाम्यया।" (भैरव तन्त्र)
(शिव संसार के कल्याण हेतु नृत्य करते हैं।)


10. शिव-पार्वती का दार्शनिक युग्म: शिव-शक्ति

Bhagwan Shiv (भगवान शिव) चेतना हैं, तो पार्वती ऊर्जा। देवीभागवत में कहा गया:

"अर्धनारीश्वर रूपेण शिवः शक्त्या समन्वितः।"
(शिव अर्धनारीश्वर रूप में शक्ति से युक्त हैं।)

कामदहन प्रसंग: जब कामदेव ने Bhagwan Shiv (भगवान शिव) की तपस्या भंग की, तो उन्होंने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया, किन्तु पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर कामदेव को पुनः जीवित किया।


11. शिव की साधना: तंत्र, योग और भक्ति

(क) तांत्रिक साधना:

  • कपालिक सम्प्रदाय: Bhagwan Shiv (भगवान शिव) को प्रसन्न करने हेतु महाव्रत।
  • पंचमकार (मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा, मैथुन) का गूढ़ रहस्य।

(ख) योग दर्शन:

  • पतञ्जलि योगसूत्र 1.1"योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः" (शिव ही चित्त की वृत्तियों को रोकने वाले हैं)।
  • 84 लाख आसन Bhagwan Shiv (भगवान शिव) द्वारा सृष्ट किए गए।

(ग) भक्ति मार्ग:

महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः। अथावाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधिगतं ह्यथावाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधिगतम्॥

अर्थ: हे महादेव! आपकी महिमा का पार पाना असंभव है। यदि ब्रह्मा आदि ज्ञानी पुरुष भी आपकी स्तुति करते हैं, तो भी वह अल्प ही है। सभी अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार ही आपकी महिमा का वर्णन कर सकते हैं।

"अचिन्त्यरूपं शिवमव्ययानन्दं..."
(शिव अचिन्त्य रूप, अनन्त आनन्दमय हैं।)


12. भगवान शिव के प्रमुख अवतार (Shiv ke Mukhya Avatar)

Bhagwan Shiv (भगवान शिव) स्वयं को साकार रूप में अवतरित करते हैं जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का अतिक्रमण होता है। शिव पुराण, लिंग पुराण और अन्य ग्रंथों में इनके अनेक अवतारों का उल्लेख है।

1. वीरभद्र अवतार : यह Bhagwan Shiv (भगवान शिव) का रौद्र और अत्यंत शक्तिशाली रूप था। दक्ष प्रजापति ने जब भगवान शिव का अपमान किया और सती ने आत्मदाह कर लिया, तब क्रोधित होकर शिव ने अपनी जटाओं से वीरभद्र को उत्पन्न किया।

श्लोक: “उत्तिष्ठ वीरभद्र त्वं, यज्ञं नाशय मे दृढम्।” (शिव पुराण)

2. भैरव अवतार : कालभैरव शिव का उग्र रूप है जो अधर्म, पाप और अहंकार का नाश करता है। यह अवतार ब्रह्मा के अहंकार को दूर करने हेतु प्रकट हुआ था।

3. हनुमान अवतार : हनुमान जी को Bhagwan Shiv (भगवान शिव) का अंशावतार माना गया है। वे अंजनी के गर्भ से जन्मे और भगवान राम के परम भक्त बने।

“मारुतात्मजमुत्साहं शंकरस्य सुतं प्रभुम्।”

4. नंदी अवतार : नंदी Bhagwan Shiv (भगवान शिव) का वाहन और परम भक्त है, परंतु नंदी को भी शिव का अवतार माना जाता है। उन्होंने वेद, शास्त्र, तंत्र की शिक्षा दी और शिवतत्त्व का प्रचार किया।

5. अश्वत्थामा : महाभारत में अश्वत्थामा को Bhagwan Shiv (भगवान शिव) का अंशावतार माना गया है। उन्हें चिरंजीवी कहा गया है।

6. श्वेत मुनी : यह एक शांत रूप था जिसमें Bhagwan Shiv (भगवान शिव) ने गहन तपस्या और ध्यान के माध्यम से योग का प्रचार किया।

7. यतिनाथ : इस अवतार में Bhagwan Shiv (भगवान शिव) ने सन्यासियों और वैरागियों को आदर्श जीवन दिखाया। यह ज्ञान और आत्मसंयम का प्रतीक है।

8. अवतार रूप: दरिद्रहरण : जब एक सच्चा शिवभक्त गरीब था, तब Bhagwan Shiv (भगवान शिव) ने भिक्षुक का रूप लेकर उसकी सहायता की। इस रूप में वे करुणा और दया का प्रतीक बनते हैं।


शिव की अष्टमूर्ति (Shiv ki Ashtamurti)

अष्टमूर्ति का अर्थ है – Bhagwan Shiv (भगवान शिव) के आठ प्रमुख रूप जिनमें वे सृष्टि के आठ तत्वों को नियंत्रित करते हैं। ये वे शक्तियाँ हैं जो संपूर्ण जगत की रचना, पालन और संहार से जुड़ी हुई हैं।

1. भव – जन्म का प्रतीक। Bhagwan Shiv (भगवान शिव) का यह रूप सृष्टि की उत्पत्ति का कारक है।

2. शर्व – संहार का प्रतीक। जब अधर्म बढ़ता है तो शर्व रूप में विनाश करते हैं।

3. रुद्र – रुदन या पीड़ा का संहारक। यह रूप करुणा और उग्रता दोनों का संयोजन है।

4. पशुपति – समस्त प्राणियों के स्वामी। जीवात्मा को मुक्त करने वाले।

5. उग्र – तेजस्वी और उग्र रूप। दुष्टों के संहार हेतु।

6. महादेव – देवों के भी देव। सबसे श्रेष्ठ, सर्वोच्च सत्ता।

7. ईशान – दिशा और ज्ञान के स्वामी। अंतर्यामी और ब्रह्मज्ञान प्रदाता।

8. अशानी – वज्रधारी, नियंत्रणकर्ता। प्राकृतिक शक्तियों पर नियंत्रण रखने वाले।

श्लोक (अष्टमूर्ति वर्णन):

“भवो रुद्रश्च शर्वश्च पशुपतिर्महेश्वरः। ईशानोऽथ पिनाकी च अष्टमूर्तयः स्मृताः॥”

13. शिव-महिमा के प्रमुख श्लोक

(क) शिव ताण्डव स्तोत्र (रावण रचित):

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥ गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।

अर्थ: भगवान शिव, जिनकी जटाओं से बहती हुई गंगा धारा पृथ्वी को पवित्र करती है, जो अपने गले में लहराती हुई विशाल नागों की माला धारण करते हैं, जिनके डमरू से डम-डम की गूंज चारों ओर फैलती है, वे उग्र तांडव करते हैं। ऐसे शिव हमें मंगल और कल्याण प्रदान करें।


जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम 

अर्थ: भगवान शिव की जटाएं जब डमरू की गूंज से थिरकती हैं, तो उनमें देवताओं की गंगा बहती है। उनके ललाट पर अग्नि की ज्वाला धधकती है और सिर पर युवा चंद्रमा शोभायमान है। मेरे मन में उनके प्रति प्रतिक्षण प्रेम और भक्ति बनी रहे।


धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।

अर्थ: भगवान शिव की दृष्टि की एक झलक से ही पृथ्वी की पुत्री पार्वती का मन प्रेम से भर जाता है। उनकी कृपा की एक धारा सारी बाधाओं को नष्ट कर देती है। ऐसे दिगम्बर शिव (जो आभूषण के रूप में दिशा को पहनते हैं) में मेरा मन सदैव रमण करे।


जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥

अर्थ: भगवान शिव की जटाओं में बसे सर्प की मणियों की किरणें दिशाओं की देवियों के मुख पर चमकती हैं, जो कदंब के कुमकुम से रंजित हैं। वे गर्वित हाथी की खाल को वस्त्र के रूप में धारण करते हैं। ऐसे भूतों के स्वामी शिव मेरे मन को अद्भुत आनंद दें।


सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः। भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥

अर्थ: जिस भूमि पर इन्द्रादि देवता अपने पुष्प चढ़ाकर भगवान शिव के चरणों की वंदना करते हैं, वह धन्य है। जो सर्पराज की माला और चंद्रमा को अपने जटाजूट में धारण करते हैं, वे शिव हमारे लिए स्थायी समृद्धि और कल्याण के कारण बनें।


ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्। सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महा-कपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः॥

अर्थ: भगवान शिव के ललाट की अग्नि से कामदेव (पञ्चसायक) जलकर भस्म हो गया। उनके सिर पर चंद्र की शीतल किरण शोभा देती है। वे महाकपालधारी हैं। उनके जटाओं से युक्त शीश हमारे कल्याण का कारण बने।

(ख) लिंगाष्टकम्:

ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिङ्गं निर्मलभासित शोभित लिङ्गम्। जन्मज दुःख विनाशक लिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥

अर्थ: जो लिंग ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवों द्वारा पूजित है, जो निर्मल प्रकाश से शोभायमान है, जो जन्म से मिलने वाले दुखों का नाश करता है — ऐसे सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।


देवमुनिप्रवरार्चित लिङ्गं कामदहं करुणाकर लिङ्गम्। रावणदर्प विनाशन लिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥

अर्थ: जो लिंग देवताओं और श्रेष्ठ मुनियों द्वारा पूजित है, जो कामनाओं का नाश करता है और करुणा का स्रोत है, जिसने रावण के अहंकार को नष्ट किया — ऐसे सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।


सर्वसुगन्धि सुलेपित लिङ्गं बुद्धिविवर्धन कारण लिङ्गम्। सिद्धसुरासुर वन्दित लिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥

अर्थ: जो लिंग दिव्य सुगंधों से सुशोभित है, जो बुद्धि का विकास करता है, और जिसे सिद्ध, देवता और असुर तक नमस्कार करते हैं — ऐसे सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।


कनकमहामणि भूषित लिङ्गं फणिपतिवेष्टित शोभित लिङ्गम्। दक्षसुयज्ञ विनाशन लिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥

अर्थ: जो लिंग स्वर्ण और महान रत्नों से भूषित है, सर्पराज द्वारा सुशोभित है, और जिसने दक्ष के यज्ञ का विनाश किया — ऐसे सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।


कुमारगुरु प्रपुजित लिङ्गं कुमारगणेश संसेवित लिङ्गम्। पद्मपटी विभूषित लिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥

अर्थ: जिस लिंग की पूजा स्वयं भगवान कार्तिकेय ने की, जिसकी सेवा गणेश और अन्य कुमारों ने की, जो कमलमालाओं से सुशोभित है — ऐसे सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।


त्रिपुरत्रिनिकृतं त्रिनेत्रं त्रिजगद्व्याप्तं त्रयमय लिङ्गम्। त्रिगुणातीतं त्रिलोक्यैका तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥

अर्थ: जो लिंग त्रिपुरासुर का संहारक है, त्रिनेत्रधारी है, तीनों लोकों में व्याप्त है, त्रिगुणों से परे है — ऐसे सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।


सर्वलोकैक वन्दित लिङ्गं सर्वलोकैक दानित लिङ्गम्। सर्वलोकैक पावन लिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥

अर्थ: जिस लिंग को सभी लोक पूजते हैं, जो सभी लोकों को दान और कल्याण देता है, जो सारे लोकों को पवित्र करता है — ऐसे सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।


अष्टदलोपरी पूजित लिङ्गं  फणिपतिवेष्टित शोभित लिङ्गम्। दक्षसुयज्ञ विनाशन लिङ्गं  तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥

अर्थ: जो लिंग कमल के अष्टदल पर पूजित है, जो सर्पों से शोभायमान है, और जिसने दक्ष यज्ञ का विनाश किया — ऐसे सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।


लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

अर्थ: जो व्यक्ति भगवान शिव के समक्ष श्रद्धापूर्वक लिंगाष्टक का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता है और सदा शिव के साथ आनन्दपूर्वक निवास करता है।

(ग) मृत्युंजय मंत्र (ऋग्वेद 7.59.12):

"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥"
(हम त्रिनेत्रधारी भगवान शिव की पूजा करते हैं, जो सुगंधित हैं और सभी प्राणियों का पोषण करते हैं। जैसे पका हुआ फल (खीरा) डंठल से बिना कष्ट के अलग हो जाता है, उसी प्रकार हम भी मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाएँ, परंतु अमरत्व (मोक्ष) को प्राप्त करें।)


14. शिव और विज्ञान

  • डमरू की ध्वनि = कॉस्मिक फ्रिक्वेंसी: NASA के अनुसार, ब्रह्माण्ड में 432 Hz की आवृत्ति Bhagwan Shiv (भगवान शिव) के डमरू जैसी है।
  • तीसरा नेत्र = पीनियल ग्लैण्ड: जिसे "आज्ञा चक्र" कहते हैं, वही ग्लैण्ड मेलाटोनिन स्रावित करता है।
  • भस्म लगाना = रेडिएशन प्रोटेक्शन: भभूत में राख के रेडियोएक्टिव प्रभाव को रोकने का गुण।


15. शिवभक्तों की परम्परा

  • नयनार संत (तमिलनाडु): "तिरुमुरई" ग्रन्थ में शिवस्तुति।
  • कश्मीर शैव दर्शन: अभिनवगुप्त द्वारा प्रतिपादित।
  • नाथ सम्प्रदाय: गोरखनाथ की "सिद्धसिद्धान्त पद्धति"।

16 भगवान शिव के 108 नाम और उनके अर्थ

1. शिव (Śiva)

अर्थ: कल्याणकारी, मंगलमय।
महत्व: यह Bhagwan Shiv (भगवान शिव) का मूल नाम है, जो उनके दयालु स्वभाव को दर्शाता है।

श्लोक: "शिवं शान्तं दयालुं च नमामि भक्तवत्सलम्।"


2. महेश्वर (Maheśvara)

अर्थ: विश्व के स्वामी।
महत्व: वे समस्त ब्रह्माण्ड के नियंत्रक हैं।


3. शंकर (Śaṅkara)

अर्थ: कल्याण करने वाले।
महत्व: यह नाम उनके "मंगलदायी" स्वरूप को प्रकट करता है।


4. नीलकण्ठ (Nīlakaṇṭha)

अर्थ: नीला कंठ वाले।
महत्व: समुद्र मंथन के विष को पीकर संसार की रक्षा की।

श्लोक: "नीलकण्ठं विषहरं देवदेवं पिनाकिनम्।"


5. भोलेनाथ (Bholenāth)

अर्थ: सरल हृदय स्वामी।
महत्व: वे भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।


6. त्र्यम्बक (Tryambaka)

अर्थ: तीन नेत्रों वाले।
महत्व: तीसरा नेत्र ज्ञान और विनाश का प्रतीक है।


7. गंगाधर (Gaṅgādhara)

अर्थ: गंगा को धारण करने वाले।
महत्व: गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया।


8. कपर्दिन (Kaparddin)

अर्थ: जटाधारी।
महत्व: जटाएँ ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का प्रतीक हैं।


9. पिनाकी (Pinākī)

अर्थ: पिनाक धनुष धारण करने वाले।
महत्व: त्रिपुरासुर का वध किया।


10. रुद्र (Rudra)

अर्थ: रोदन कराने वाले (या प्रलय के देवता)।
महत्व: वेदों में उन्हें 11 रुद्रों का स्वामी कहा गया।


11-20: शिव के योगी स्वरूप

नामअर्थमहत्व
11. योगीपरम योगीआदियोगी, योग का प्रवर्तक
12. महायोगीसर्वश्रेष्ठ योगीसमाधिस्थ स्वरूप
13. ध्यानीध्यानमग्ननिरंतर ध्यानरत
14. तपस्वीतप का स्वामीकैलाश में तपस्या
15. जटाधारीजटाएँ धारण करने वालेतपस्या का प्रतीक

21-30: शिव के विभिन्न अस्त्र-शस्त्र

नामअर्थमहत्व
21. त्रिशूलधारीत्रिशूल धारण करने वालेत्रिगुणों (सत्, रज, तम) का स्वामी
22. डमरुधारीडमरू धारण करने वालेनादब्रह्म का प्रतीक
23. खट्वांगधारीखट्वांग (मुंडमाला) धारण करने वालेतांत्रिक शक्ति का प्रतीक

31-40: शिव के दिव्य गुण

नामअर्थमहत्व
31. अजअजन्मान आदि, न अंत
32. अव्ययअविनाशीकभी नष्ट न होने वाले
33. अनन्तअनंतसीमारहित

41-50: शिव के भक्ति स्वरूप

नामअर्थमहत्व
41. भक्तवत्सलभक्तों से प्रेम करने वालेभोलेबाबा का स्नेही स्वभाव
42. अशुतोषजल्दी प्रसन्न होने वालेसरल भेंट से खुश हो जाते हैं
43. कामारीकामदेव के विजेताकाम को भस्म किया

51-60: शिव के अवतार एवं रूप

नामअर्थमहत्व
51. हनुमानरुद्रावताररामभक्त और वायुपुत्र
52. दुर्वासाक्रोधी ऋषिश्राप और वरदान देने वाले
53. कालभैरवकाशी के कोतवालमृत्युंजय का उग्र रूप

61-70: शिव की शक्तियाँ

नामअर्थमहत्व
61. मृत्युंजयमृत्यु को जीतने वालेअमरत्व का दाता
62. विष्णुवल्लभविष्णु के प्रियहरि-हर एकत्व का प्रतीक
63. सर्वज्ञसब कुछ जानने वालेसमस्त ज्ञान के स्वामी

71-80: शिव के प्राकृतिक रूप

नामअर्थमहत्व
71. चन्द्रशेखरचंद्रमा को धारण करने वालेमन के स्वामी
72. सूर्यसूर्य के समान तेजस्वीज्ञान का प्रकाश
73. अग्निअग्नि के समान उग्रपापों को भस्म करने वाले

81-90: शिव के तांत्रिक स्वरूप

नामअर्थमहत्व
81. भैरवभयानक रूपअघोर मार्ग के देवता
82. कपालीकपाल धारण करने वालेमुक्ति के दाता
83. स्मशानवासीश्मशान में निवास करने वालेमोह-माया से मुक्ति का प्रतीक

91-100: शिव के दिव्य स्थान

नामअर्थमहत्व
91. कैलाशपतिकैलाश के स्वामीयोगियों का धाम
92. वाराणसीनाथकाशी के नाथमोक्षदायिनी नगरी के स्वामी
93. हिमालयसुतापार्वती के पतिगिरिराज की पुत्री के स्वामी

101-108: शिव के विशेषण

नामअर्थमहत्व
101. सत्यस्वरूपसत्य के प्रतीकझूठ से कोई सम्बंध नहीं
102. अद्वैतएकत्व का प्रतीकद्वैत से परे
108. ओंकारॐ का स्वरूपसमस्त मंत्रों का सार

निष्कर्ष

Bhagwan Shiv (भगवान शिव) सनातन दर्शन में केवल एक देवता नहीं, सम्पूर्ण ब्रह्मांड की चेतना, शक्ति और संतुलन के आधार हैं। वे सृजन (उत्पत्ति), पालन (स्थिति) और संहार (विलय) – तीनों प्रक्रियाओं के मूल कारण हैं।

  • जगत की उत्पत्ति मेंBhagwan Shiv (भगवान शिव) निराकार ब्रह्म के रूप में शक्ति के साथ मिलकर सृष्टि का आरंभ करते हैं। शिव और शक्ति के संयोग से ब्रह्मांडीय स्पंदन उत्पन्न होता है।
  • स्थिति या पालन में Bhagwan Shiv (भगवान शिव) योग, ज्ञान और वैराग्य द्वारा जीवन को संतुलित करते हैं। वे गृहस्थ के रूप में (पार्वती के साथ), योगी के रूप में (समाधिस्थ), और नटराज के रूप में (नृत्यमय) सृष्टि को नियंत्रित करते हैं।
  • विलय के समयBhagwan Shiv (भगवान शिव) रौद्र रूप धारण कर संसार का संहार करते हैं – लेकिन यह संहार नाश नहीं, बल्कि एक नव-सृजन की भूमिका होता है। Bhagwan Shiv (भगवान शिव) का तांडव नृत्य इसी चक्र को दर्शाता है।

Bhagwan Shiv (भगवान शिव) न आदि हैं, न अंत। वे संपूर्ण समय, तत्व, चेतना, और अस्तित्व का मूल हैं। ब्रह्मांड का प्रत्येक कण शिवमय है – चाहे वह उत्पत्ति हो, स्थिति हो या विलय। इसीलिए उन्हें "महादेव", "त्रयंबक", "मृत्युंजय", और "कालों के भी काल – महाकाल" कहा गया है।

"शिवं ज्ञात्वा सदा शान्तिम् लभते नात्र संशयः।
यः शिवे मनसा युक्तः स मुक्तः स च शाश्वतः॥" (शिव पुराण)

हर हर महादेव !


FAQ

Q1 : भगवान शिव (महादेव) कौन हैं?

Ans : भगवान शिव, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में अग्रणीय हैं। उन्हें देवाधिदेव अर्थात देवताओं का देवता कहा जाता है | वे त्रिदेवों में से एक हैं, जिन्हें संहार का देवता माना जाता है।  

Q2 : भगवान शिव के पिता कौन थे?

Ans : वैसे तो पुराणों में शिव को अजन्मा और अविनाशी कहा गया है अतः उनके पिता के बारे में कोई ठोस उदाहरण नहीं हैं, परन्तु कुछ किवदंतियों में सदाशिव (काल ब्रह्म) को शिव के पिता उल्लेख किया जाता है | 

Q3 : शिव से बड़ा कौन है?

Ans : इस प्रश्न का सीधा उत्तर दे पाना कठिन है क्योंकि भारतीय पुरानतन मान्यताओं की विविधता के चलते अलग अलग पुराणों और आर्ष ग्रंथो में भिन्न-भिन्न प्रमाण है | जहां एक ओर शिव महापुराण शिव से चराचर जगत की उत्पत्ति मानता है वहीं पद्मपुराण और विष्णु पुराण विष्णु से, ऐसे ही स्कन्द पुराण देवी से जगत उत्पत्ति मानता है| सनातन धर्म के अथाह ग्रन्थ सागर और तार्किक उदाहरणों के सामने किसी एक मान्यता को सिद्ध कर पाने इतना सामर्थ्य देवताओं में भी नहीं है | 

Q3 : शिव किसका ध्यान करते हैं?

Ans : इस प्रश्न के सन्दर्भ में सबसे लोकप्रिय किंवदंती यह है कि एक बार पार्वती जी ने शिवजी से प्रश्न किया कि आप किसका ध्यान करते हैं तो उनका उत्तर था - अपने प्रभु श्रीराम का | कतिपय यहां राम से तात्पर्य परब्रह्म से है| एक तर्क यह भी हैं कि जैसा श्रीमद्भागवत कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने ही आत्मस्वरूप का ध्यान करते थे। वैसे ही शिव भी अपने ही आत्मस्वरूप परब्रह्म या सदाशिव का ध्यान करते हैं |  

Q5 : भगवान शंकर की आयु कितनी है?

Ans : भगवान् शिव के लिए अजन्मा, अविनाशी, निराकार सम्बोधन है अतः वह आयु, काल और आकार के सीमाओं के परे हैं | अलग अलग ग्रंथों में शिव उत्पत्ति और उनके स्वरूप का वर्णन है परन्तु यह केवल श्रद्धालुओ की मनोवृत्ति है | 

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