"कर्ज वाली लक्ष्मी" – पिता की आंखों से छलके दर्द की कहानी

भारत में हर माता-पिता का सपना होता है कि उनकी बेटी एक अच्छे घर में जाए, प्यार और सम्मान पाए। लेकिन जब दहेज इस रिश्ते के बीच दीवार बन जाए, तो वह सपना एक डरावनी हकीकत बन जाता है। ऐसी ही एक सच्ची, दिल छू लेने वाली कहानी है "कर्ज वाली लक्ष्मी नहीं चाहिए" — जो हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या वाकई दहेज आज भी ज़रूरी है?

Karz wali Laxmi

एक 15 साल का लड़का भागता हुआ अपने पापा (दीनदयाल जी) के पास आया और बोला "पापा ! दीदी के होने वाले ससुरजी और सास कल आ रहे है। अभी-अभी दीदी के नंबर पर उनका फोन आया था।"

दीनदयाल जी की बेटी की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी।

दीनदयालजी पहले से ही उदास बैठे कुछ सोच रहे थे, बेटे की बात सुनकर लम्बी सांस लेते हुए धीरे से बोले - "हां बेटा.... उनका कल मेरे पास भी फोन आया था कि वो एक-दो दिन में दहेज की बात करने आ रहे हैं, बोल रहे थे कि आपसे दहेज के बारे में कुछ ज़रूरी बात करनी है।"  

दीनदयाल जी की पत्नी ने पूछा - "दहेज के बारे में क्या बात करनी है, उन्हें किस चीज की कमी होगी? वो तो बड़ा ही संपन्न परिवार है और वैसे भी कुछ लेन-देन की बात करनी ही थी तो सगाई के समय ही करनी चाहिए थी ना अब क्यों ?"

यही तो मैं भी सोच-सोचकर परेशान हो रहा हूँ कि उनकी हैसियत का दहेज़ मैं कहाँ से जुटा पाउँगा? बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला है, सुन्दर है, अच्छी नौकरी है और अपनी बेटी पद्मा को पसंद भी है। कहीं दहेज़ के कारण ये रिश्ता हाथ से न निकल जाए। कहीं उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी ही न कर पाऊं?" कहते-कहते दीनदयालजी की आँखें भर आयीं।

घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी, लड़की भी उदास हो गयी।

अगली सुबह समधी-समधिन आए, दीनदयाल जी के परिवार ने उनकी खूब आवभगत की।

कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने दीनदयाल जी से कहा - "दीनदयाल जी अब वो बात कर लेते हैं जिसके लिए हम यहाँ आएं हैं।"

दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी पर अपने आपको संभालते हुए वो बोले - "हां.... हां.. समधीजी जो आप हुकुम करें।"

लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयालजी के पास खिसकाई और धीरे से उनके कान के पास आकर बोले - "दीनदयालजी मुझे आपसे दहेज के बारे बात करनी है।"

दीनदयालजी का दिल बैठ गया और आंखों में आंसू भर गए, हाथ जोड़ते हुये लड़के के पिता से बोले - "बताईए समधीजी ! जो आप को उचित लगे.... मैं पूरी कोशिश करूंगा व्यवस्था करने की...." 

लड़के के पिता ने दीनदयाल जी के जुड़े हुए हाथो को अपने हाथो में लेते हुए कहा- "हाथ मत जोड़िये, मेरा ये निवेदन आपको किसी भी हाल में मानना ही होगा।"

लड़के के पिता ने आगे कहा - "दीनदयाल जी मेरा आपसे हाथ जोड़कर निवेदन है कि आप अपनी बेटी पद्मा को कन्यादान में कुछ दो या मत दो... थोड़ा दो या ज़्यादा दो.. मुझे सब स्वीकार है... पर कर्ज लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना.. वो मैं स्वीकार नहीं कर पाऊंगा..."

दीनदयाल जी और उनका सारा परिवार सांस रोके सुन रहा था, कमरे में खामोशी छाई हुई थी सबकी आँखें दीनदयालजी और समधीजी पर थी और दीनदयाल जी निःशब्द होकर समधी को सुन रहे थे।

लड़के के पिता ने आगे कहा - "क्योकि जो बेटी अपने पिता को कर्ज में डुबो दे, वैसी "कर्ज वाली लक्ष्मी" मुझे मेरे परिवार में स्वीकार नही... मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए, जो अपने माता-पिता के संस्कार और आशीर्वाद लेकर मेरे घर आए। जिसको विदा करने के बाद आपके मन-मस्तिष्क में ख़ुशी हो ना के कर्ज उतारने की चिंता। जो बेटी अपने माता-पिता की चिंता का नहीं बल्कि ख़ुशी का कारण बनकर ससुराल जाती है वह सौभाग्य-लक्ष्मी की तरह अपने ससुराल को भी खुशियों से भर देती है।"

समधीजी की बात सुनकर दीनदयालजी और उनके परिवार वाले सन्न रह गए। दीनदयालजी की आँखों के आँसू छलक गए, किसी छोटे बच्चे की तरह वह अपने समधीजी के गले लग गए और रुंधे गले से बोले - "समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा।"

यह कहानी मेरी नहीं है और मैं यह भी नहीं जानता कि यह किसने और कब लिखी है। मुझे अच्छी लगी तो मैंने इसे आप सबके के साथ साझा करना अपना दायित्व समझा। यदि आपको भी यह कहानी पसंद आई है तो आप भी यह प्रण लें कि ना तो "कर्ज वाली लक्ष्मी" किसी को देंगे और ना किसी से लेंगें और लड़की के पिता को कर्ज लेकर शादी करने के लिए बिलकुल मजबूर नहीं करेंगे। यही उनकी सच्ची प्रशंसा होगी जिन्होंने यह कहानी दिल से कागज पर उतारी है| 

कहानी से सीख: दहेज नहीं, बेटी का सम्मान चाहिए

इस कहानी में छुपा संदेश बहुत गहरा है:

  • दहेज प्रथा को समाप्त करें
  • बेटी को बोझ नहीं, गौरव समझें
  • शादी को सौदा नहीं, संस्कार मानें
  • "कर्ज वाली लक्ष्मी" किसी को न दें और न लें

अंतिम संदेश: क्या आप भी यह संकल्प लेंगे?

यह कहानी किसी एक की नहीं है — यह हम सबकी है। आइए हम सब यह संकल्प लें कि:

"ना तो 'कर्ज वाली लक्ष्मी' किसी को देंगे और ना किसी से लेंगे।"

दहेज प्रथा को जड़ से मिटाना है तो शुरुआत हमें खुद से करनी होगी। तभी एक बेटी बिना बोझ के, गर्व से ससुराल जाएगी और एक पिता चैन की नींद सो सकेगा।


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