दो दिन जन्माष्टमी का रहस्य
भारत एक धार्मिक और आध्यात्मिक परंपरा से जुड़ा हुआ देश है, जहाँ हर पर्व और उत्सव का विशेष महत्व होता है। हिंदू धर्म में जन्माष्टमी का त्योहार अत्यंत पावन और भक्तिपूर्ण माना जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। किंतु अक्सर देखा जाता है कि कुछ वर्षों में जन्माष्टमी दो दिनों तक मनाई जाती है। यह स्थिति सामान्य लोगों के मन में कई शंकाएँ उत्पन्न करती है — क्या दोनों ही दिन पर्व मान्य हैं? किस दिन व्रत करना चाहिए? किस दिन मठ-मंदिरों में अधिक मान्यता होती है? और क्या इसके पीछे कोई ज्योतिषीय, पौराणिक या पंचांगीय कारण है?
इस लेख में हम विस्तारपूर्वक दो दिन जन्माष्टमी मनाए जाने के कारण, शंका और समाधान पर चर्चा करेंगे, ताकि आमजन और भक्तगण सही निष्कर्ष तक पहुँच सकें।
जन्माष्टमी पर्व का संक्षिप्त परिचय
जन्माष्टमी, जिसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी भी कहा जाता है, भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व द्वादश मास में विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसे भगवान विष्णु के आठवें अवतार, श्रीकृष्ण के प्राकट्य दिवस के रूप में माना जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब पृथ्वी पर पाप और अधर्म बढ़ गया, तब भगवान विष्णु ने कृष्ण रूप में अवतार लेकर धर्म की स्थापना की और अत्याचारियों का नाश किया।
क्यों होती है जन्माष्टमी दो दिन?
यह प्रश्न सबसे महत्वपूर्ण है। जन्माष्टमी दो दिनों तक क्यों मनाई जाती है? इसका मुख्य कारण तिथि का परिवर्तन और पंचांग की गणना है।
1. अष्टमी और नवमी का संयोग
कभी-कभी अष्टमी तिथि दो दिनों तक रहती है, या अष्टमी तिथि का प्रारंभ और अंत मध्यरात्रि को होता है। श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में अष्टमी तिथि की अर्धरात्रि में हुआ था। जब पंचांग में अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र का संयोग दो दिनों में बँट जाता है, तो जन्माष्टमी दो दिन मनाई जाती है।
2. स्मार्त और वैष्णव परंपरा का अंतर
- स्मार्त परंपरा : गृहस्थ लोग और सामान्य भक्त प्रायः स्मार्त परंपरा के अनुसार व्रत करते हैं। इसमें तिथि के आधार पर निर्णय लिया जाता है।
- वैष्णव परंपरा : वैष्णव संप्रदाय (विशेषकर मंदिर और आचार्य परंपरा) में जन्माष्टमी उस दिन मनाई जाती है जब अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र का योग अर्धरात्रि में होता है।
इसलिए कई बार गृहस्थ और मंदिरों में जन्माष्टमी अलग-अलग दिन होती है।
3. तिथि की क्षय और वृद्धि
कभी पंचांग अनुसार अष्टमी तिथि बहुत कम समय के लिए आती है या दो दिनों में फैल जाती है। ऐसी स्थिति में विद्वान गणनाओं के आधार पर निर्णय करते हैं कि व्रत किस दिन करना उचित होगा।
शास्त्रीय और पौराणिक आधार
1. पौराणिक संदर्भ
भागवत पुराण, विष्णु पुराण, और हरिवंश पुराण में श्रीकृष्ण जन्म का वर्णन मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार भगवान का जन्म रोहिणी नक्षत्र, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, और मध्यरात्रि में हुआ। इसलिए तीनों कारकों (तिथि, नक्षत्र और रात्रि) का संयोग महत्वपूर्ण माना गया।
2. ज्योतिषीय दृष्टिकोण
वैदिक ज्योतिष में मान्यता है कि जब चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में और अष्टमी तिथि के संयोग में आता है, तभी जन्माष्टमी का पूर्ण फल मिलता है। जब यह संयोग दो दिनों में विभाजित हो जाता है तो दोनों दिन महत्व रखते हैं।
शंका : किस दिन जन्माष्टमी मनाएँ?
यह प्रश्न हर बार भक्तों के मन में आता है। उत्तर इस प्रकार है:
- गृहस्थ लोग : जिन्हें व्रत के नियम कठिन लगते हैं, वे स्मार्त परंपरा अनुसार जन्माष्टमी मना सकते हैं।
- मठ-मंदिर और वैष्णव अनुयायी : उन्हें वैष्णव परंपरा के अनुसार, रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के संयोग वाले दिन उपवास करना चाहिए।
- दोनों दिन संभव : कई भक्त दोनों दिन उपवास करके भगवान की कृपा प्राप्त करते हैं।
समाधान : किस प्रकार निर्णय लें?
1. पंचांग और स्थानीय मंदिर की परंपरा देखें
हर क्षेत्र में पंचांग और ज्योतिषियों के अनुसार तिथि भिन्न हो सकती है। ऐसे में स्थानीय परंपरा और निकटस्थ मंदिर में जिस दिन जन्माष्टमी मनाई जा रही हो, उसी दिन व्रत करें।
2. अपनी क्षमता और श्रद्धा का ध्यान रखें
यदि कठिन व्रत संभव न हो, तो स्मार्त परंपरा अनुसार व्रत रखें। यदि आप कठोर नियमों का पालन कर सकते हैं तो वैष्णव परंपरा का अनुसरण करें।
3. द्वंद्व की स्थिति में गुरुजनों से परामर्श लें
धार्मिक शंकाओं में सदैव आचार्य, पंडित या अपने आध्यात्मिक गुरु से मार्गदर्शन लें।
धार्मिक महत्व
दो दिन जन्माष्टमी का रहस्य केवल पंचांगीय गणना का विषय नहीं है। यह भक्त की श्रद्धा और आस्था से भी जुड़ा है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं —
“पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।”
अर्थात, जो भी भक्त प्रेम और श्रद्धा से मुझे अर्पण करता है, मैं उसे स्वीकार करता हूँ। इसलिए वास्तविक महत्व भक्तिभाव का है, न कि केवल तिथि विवाद का।
दो दिन जन्माष्टमी के फायदे
- भक्तों को दो दिन तक श्रीकृष्ण भक्ति का अवसर मिलता है।
- मंदिरों और घरों में भक्ति-उत्सव का वातावरण अधिक समय तक रहता है।
- भक्त अपनी सुविधा अनुसार दोनों दिन या किसी एक दिन उपवास कर सकते हैं।
निष्कर्ष
दो दिन जन्माष्टमी होना किसी भ्रम या विवाद का विषय नहीं है, बल्कि यह पंचांग की गणना और परंपरा का स्वाभाविक परिणाम है। स्मार्त और वैष्णव परंपराओं के अंतर के कारण यह स्थिति उत्पन्न होती है। भक्तों को चाहिए कि वे अपनी श्रद्धा, क्षमता और स्थानीय परंपरा के अनुसार जन्माष्टमी मनाएँ। अंततः भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति ही सबसे बड़ा समाधान है।

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