Aditya-L1 विकसित भारत का सपना
इस Aditya-L1 मिशन का उद्देश्य सौर कोरोना (Solar Corona), प्रकाशमंडल (Photosphere), क्रोमोस्फीयर (Chromosphere) और सौर पवन (Solar Wind) के बारे में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करना है।
Aditya-L1 का प्राथमिक उद्देश्य सूर्य के विकिरण, ऊष्मा, कण प्रवाह तथा चुंबकीय क्षेत्र सहित सूर्य के व्यवहार और वे पृथ्वी को कैसे प्रभावित करते हैं, के संबंध में गहरी समझ हासिल करना है।
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| Aditya-L1 |
Aditya-L1 परिचय :
आदित्य-एल1, 1.5 मिलियन किलोमीटरकी दूरी से सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन है। Aditya-L1 L1 बिंदु तक पहुँचने में इसे लगभग 125 दिन लगेंगे। एस्ट्रोसैट (AstroSat- वर्ष 2015) के बाद आदित्य-एल1 भी इसरो का दूसरा खगोल विज्ञान वेधशाला-श्रेणी मिशन है। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (L1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है। इस मिशन की यात्रा भारत के पिछले मार्स ऑर्बिटर मिशन, मंगलयान की तुलना में काफी छोटी है।
लैग्रेंज पॉइंट :
- Lagrange points अंतरिक्ष में वे विशेष स्थान हैं जहाँ सूर्य और पृथ्वी जैसे दो बड़े परिक्रमा करने वाले पिंडों की गुरुत्वाकर्षण शक्तियाँ एक-दूसरे को संतुलित करती हैं।
- इसका अर्थ यह है कि एक छोटी वस्तु, जैसे किअंतरिक्ष यान, अपनी कक्षा को बनाए रखने के लिये अधिक ईंधन का उपयोग किये बिना इन बिंदुओं पर रह सकती है।
- कुल पाँच Lagrange points (लैग्रेंज पॉइंट) होते हैं, जिनमें से प्रत्येक की अलग-अलग विशेषताएँ हैं। ये बिंदु एक छोटे द्रव्यमान को दो बड़े द्रव्यमानों के मध्य स्थिर पैटर्न में परिक्रमा करने में सक्षम बनाते हैं।
- सूर्य-पृथ्वी प्रणाली में लैग्रेंज पॉइंट:L1:L1 को सौर अवलोकन के लिये लैग्रेंज बिंदुओं में सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। L1 के आसपास प्रभामंडल कक्षा में रखा गया उपग्रह, सूर्य का बिना किसी प्रच्छादन / ग्रहण के लगातार अवलोकन करने में मदद करता है।
- सौर एवं सौरचक्रीय वेधशाला (SOHO) इस समय वहाँ मौजूद है।
- L2:यह सूर्य से देखने पर पृथ्वी के ठीक 'पीछे' स्थित है, L2 पृथ्वी की छाया के हस्तक्षेप के बिना बड़े ब्रह्मांड का अवलोकन करने के लिये उत्कृष्ट है।
- जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप, L2 के पास सूर्य की परिक्रमा करता है।
- L3:सूर्य के पीछे, पृथ्वी के विपरीत और पृथ्वी की कक्षा से ठीक परे स्थित यह सूर्य के सुदूर भाग का संभावित अवलोकन प्रदान करता है।
- L4 एवं L5:L4 और L5 पर वस्तुएँ स्थिर स्थिति बनाए रखती हैं, जिससे दो बड़े पिंडों के साथ एक समबाहु त्रिभुज बनता है।
- इनका उपयोग अक्सर अंतरिक्ष वेधशालाओं के लिये किया जाता है,जैसे किक्षुद्रग्रहों की जाँच करने के लिये उपयोग किया जाता है।
- नोट: L1, L2 और L3 बिंदु अस्थिर हैं, जिसका अर्थ है कि एक छोटी सी गड़बड़ी के कारण कोई वस्तु उनसे दूर जा सकती है। इसलिये इन बिंदुओं की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों को अपनी स्थिति बनाए रखने के लिये नियमित दिशा सुधार की आवश्यकता होती है।
सौर अन्वेषण का महत्त्व:
- हमारे सौर मंडल को समझना:सूर्य हमारे सौर मंडल का केंद्र है और इसकी विशेषताएँ अन्य सभी खगोलीय पिंडों के व्यवहार को काफी प्रभावित करती हैं। सूर्य का अध्ययन करने से हमें सौर मंडल के आस-पास की गतिशीलता को समझने में सहायता मिल सकती है।
- अंतरिक्ष मौसम/वातावरण की भविष्यवाणी:सौर गतिविधियाँ, जैसे सौर प्रज्वाल और कोरोनल मास इजेक्शन पृथ्वी के अंतरिक्ष पर्यावरण को प्रभावित कर सकती हैं।
- संचार प्रणालियों, नौसंचालन और पावर ग्रिड में संभावित व्यवधानों कीभविष्यवाणी करने तथा उन्हें कम करने के लिये इन घटनाओं को समझना आवश्यक है।
- सौर भौतिकी को आगे बढ़ाना:इसके चुंबकीय क्षेत्र, हीटिंग मेकेनिज़्म एवं प्लाज़्मा गतिशीलता सहित सूर्य के जटिल व्यवहार की खोज, मौलिक भौतिकी और खगोल भौतिकी की प्रगति में योगदान देते हैं।
- ऊर्जा अनुसंधान को बढ़ावा:सूर्य एक प्राकृतिक संलयन रिएक्टर है। इसके मूल और परमाणु प्रतिक्रियाओं के अध्ययन से प्राप्त अंतर्दृष्टि पृथ्वी पर स्वच्छ और टिकाऊ संलयन ऊर्जा की हमारी खोज में सहायक हो सकती है।
- उपग्रह संचालन में सुधार:सौर विकिरण और सौर वायु उपग्रहों और अंतरिक्ष यान के कामकाज़ को प्रभावित करते हैं। इन सौर अंतःक्रियाओं को समझने से अंतरिक्ष यान को बेहतर ढंग से डिज़ाइन और संचालन करने में सहायता मिलती है।
Conclusion
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने अपने पहले सौर मिशन, आदित्य-एल1 का प्रक्षेपण किया। इसका प्रक्षेपणPSLV-C57 रॉकेट का उपयोग करके किया गया था। इसरो के इतिहास में यह पहली बार था जब PSLV के चौथे चरण को दो बार प्रक्षेपित किया गया, ताकि अंतरिक्ष यान को उसकी अंडाकार कक्षा में सटीक रूप से स्थापित किया जा सके।

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